Monday 3 March 2014

बौछार …… तेरे  रंगो की !!


धीमी सी दस्तक हुइ !
एक अजनबी की आहट थी 
घबराई !! दिल ने एक नई  शुरूवात की 
धीमे धीमे होले से 
नज़दीकियाँ बढ़ने लगी 
मेरी नन्ही सोच मे 
चाहत अनेक पलने लगी! 
एक सुनहरी मुस्कान की भी 
कीमत थी तेरी ख़ुशी 
मेरी दिल की , जान की 
एक ड़ोर तुजसे जा बंधी!!













मेरी अब परछाई मे भी 
छाने लगी कोई कमी..... 
मेरी सोच के! मुस्कान के पीछे भी था बस तू ही!
जो तेरे आने से ज़िंदगी 
लाई है रंगो की होली! 
ना जाने कैसे भीग गई मै पूरी की पूरी।  
शिल्पा अमरया