Monday 1 December 2014

एक भ्रम 
कुछ पाना चाहते है हम 
कुछ खोके भी ना है ग़म 
कुछ पाके भी है कम कम!! 
ये है जीवन 
तेरे मेरे आस्तित्व का दर्पण .

कुछ अपना है ! कुछ सपना है !!
कुछ सपना मेरा अपना है !
कुछ सपने छूने की  चाह में 
बिछड़ गया वो बचपन 
ये है जीवन! 
तेरे मेरे बचपन का परचम !!













कुछ ख़ुशी छुपी है मुझमे कही !
कही  छुपी है  मेरी  चुप्पी!! 
किसी  की चुपके से देख हँसी !! हो जाता है मन पावन!!
ये है जीवन !
तेरी मेरी खुशियो का यौवन 

कोई  साथ है मेरे जीवन मरण!
कोई साथ है बस एक षड 
कोई भीड़ के कोनो में भी !! बस देते है खालीपन 
ये है जीवन !
तेरे मेरे साथ का एक भरम!!


ये है जीवन 
तेरे मेरे आस्तित्व का दर्पण 
तेरे मेरे बचपन का परचम 
तेरी मेरी खुशियो का योवन 
तेरे मेरे साथ का बस "एक भ्रम "
बस एक भ्रम !!
 शिल्पा अमरया 


Monday 11 August 2014


मातृ भूमी को नमन 

करती हू मै नमन  उन्हें 
जो मात्र भूमी पे मर मिटे 
अपनी माँ से कोसौ दूर 
माँ भगवती की गोद मे पल रहे! 
हो जाती है आँखे नम 
देख सरहद की चोटियाँ 
जिनकी बुनियाद हो कर बुलंद 
सुनाती है वीर कहानियाँ !१!

हर वो वीर जो सीमा पे 
पल पल सोचा करता होगा 
मेरी बूढ़ी माँ का 
ख्याल कौन रखता होगा !
बूढ़े पिताजी की आँखे भी, 
मानो पथरा सी जाती होंगी !!
अपने वीर बेटे को सोच 
सहर ज़हन मे आती होगी!
मेरी प्यारी बहन भी 
राखी लेके बैठी होगी 
कलाई पे राखी सजा 
भाव विभोर वो भी होगी ! 
और जिससे कोई रिश्ता ना जुड़ा 
उसका क्या मै बतलाऊ, 
मेरे न होने पर हर रोज़ आसू  बहाती होगी,
हर दुआ उसकी आगाज़ मुझ से ही करती होगी!
अपने सपनो में पंख लगा 
दिन रात ऊँचा उड़ती होगी ! 
हर पल मेरे आने की फ़रियाद खुदा से करती होगी !!

हू तैनात मे सरहद पे 
हर पल सोचा करता हू 
अपनी जन्म भूमी पे जीवन न्योछावर करता हू!
हर एक एहसास जीवन, मिला इसके ही कारण  
इसकी लाज की रक्षा मे 
जीता और मे मरता हू !!
करके हर बूँद लहू की अर्पण … चरणों  मे !!
जी जाऊँगा !!
शहादत हुई तो भी क्या 
गौरवंगत का सहरा सजाऊँगा !!

शिल्पा अमरया 

Monday 3 March 2014

बौछार …… तेरे  रंगो की !!


धीमी सी दस्तक हुइ !
एक अजनबी की आहट थी 
घबराई !! दिल ने एक नई  शुरूवात की 
धीमे धीमे होले से 
नज़दीकियाँ बढ़ने लगी 
मेरी नन्ही सोच मे 
चाहत अनेक पलने लगी! 
एक सुनहरी मुस्कान की भी 
कीमत थी तेरी ख़ुशी 
मेरी दिल की , जान की 
एक ड़ोर तुजसे जा बंधी!!













मेरी अब परछाई मे भी 
छाने लगी कोई कमी..... 
मेरी सोच के! मुस्कान के पीछे भी था बस तू ही!
जो तेरे आने से ज़िंदगी 
लाई है रंगो की होली! 
ना जाने कैसे भीग गई मै पूरी की पूरी।  
शिल्पा अमरया