Monday 11 August 2014


मातृ भूमी को नमन 

करती हू मै नमन  उन्हें 
जो मात्र भूमी पे मर मिटे 
अपनी माँ से कोसौ दूर 
माँ भगवती की गोद मे पल रहे! 
हो जाती है आँखे नम 
देख सरहद की चोटियाँ 
जिनकी बुनियाद हो कर बुलंद 
सुनाती है वीर कहानियाँ !१!

हर वो वीर जो सीमा पे 
पल पल सोचा करता होगा 
मेरी बूढ़ी माँ का 
ख्याल कौन रखता होगा !
बूढ़े पिताजी की आँखे भी, 
मानो पथरा सी जाती होंगी !!
अपने वीर बेटे को सोच 
सहर ज़हन मे आती होगी!
मेरी प्यारी बहन भी 
राखी लेके बैठी होगी 
कलाई पे राखी सजा 
भाव विभोर वो भी होगी ! 
और जिससे कोई रिश्ता ना जुड़ा 
उसका क्या मै बतलाऊ, 
मेरे न होने पर हर रोज़ आसू  बहाती होगी,
हर दुआ उसकी आगाज़ मुझ से ही करती होगी!
अपने सपनो में पंख लगा 
दिन रात ऊँचा उड़ती होगी ! 
हर पल मेरे आने की फ़रियाद खुदा से करती होगी !!

हू तैनात मे सरहद पे 
हर पल सोचा करता हू 
अपनी जन्म भूमी पे जीवन न्योछावर करता हू!
हर एक एहसास जीवन, मिला इसके ही कारण  
इसकी लाज की रक्षा मे 
जीता और मे मरता हू !!
करके हर बूँद लहू की अर्पण … चरणों  मे !!
जी जाऊँगा !!
शहादत हुई तो भी क्या 
गौरवंगत का सहरा सजाऊँगा !!

शिल्पा अमरया 

No comments:

Post a Comment